Papa loves Ghazal and few of Mehandi Hasan ghazals are his favorite
. Few ghazals of Bahadur Shah Zafar are incredible
and one of them is Baat Karni .
Few lines from this ghazal where the Shahanshah seems lonely :
बात करनी मुझे
मुश्किल कभी ऐसी
तो न थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी,
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी,
ले गया छीन
के कौन आज
तेरा सब्र-ओ-करार
बेक़रारी तुझे ए दिल कभी ऐसी तो न थी,
बेक़रारी तुझे ए दिल कभी ऐसी तो न थी,
चश्म-ए-क़ातिल
मेरी दुश्मन थी
हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी,
जैसे अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी,
उनकी आँखों ने खुदा
जाने किया क्या
जादू
के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी,
के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी,
अक्स-ए-रुख-ए-यार
ने किस से
है तुझे चमकाया
ताब तुझ में माह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी,
ताब तुझ में माह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी,
क्या सबब तू
जो बिगड़ता है
ज़फर से हर
बार
खू तेरी हूर-ए-शमाइल कभी ऐसी तो न थी.
खू तेरी हूर-ए-शमाइल कभी ऐसी तो न थी.
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