Thursday 19 January 2017

तुम्हारी याद

मौत इक गीत रात गाती थी
ज़िन्दगी झूम झूम जाती थी

कभी दीवाने रो भी पडते थे
कभी तेरी भी याद आती थी

रोते जाते थे तेरे हिज़्र नसीब
रात फ़ुरकत की ढलती जाती थी

खोई खोई सी रहती थी वो आंख
दिल का हर भेद पा भी जाती थी

ज़िक्र था रंग-ओ-बू का और दिल में
तेरी तस्वीर उतरती जाती थी

हुस्न में थी इन आंसूओं की चमक
ज़िन्दगी जिनमें मुस्कुराती थी

तेरे उन आंसूओं की याद आयी
ज़िन्दगी जिनमें मुस्कुराती थी

गमे-जानां हो या गमें-दौरां
लौ सी कुछ दिल में झिलमिलाती थी

ज़िन्दगी को वफ़ा की राहों में
मौत खुद रोशनी दिखाती थी

बात क्या थी कि देखते ही तुझे
उल्फ़ते-ज़ीस्त भूल जाती थी

थे ना अफ़लाके-गोश बर-आवाज
बेखुदी दास्तां सुनाती थी

सामने तेरे जैसे कोई बात
याद आ आ के भूल जाती थी

वो तेरा गम हो या गमे-दुनिया
शमा सी दिल में झिलमिलाती थी

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