Friday 24 October 2014

BAAT KARNI MUJHE MUSHKIL



Papa loves Ghazal and few of Mehandi Hasan ghazals are his favorite  . Few ghazals of Bahadur Shah Zafar are incredible and one of them is Baat Karni .

Few lines from this ghazal where the Shahanshah seems lonely :

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो थी,
ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र--करार
बेक़रारी तुझे दिल कभी ऐसी तो थी,
चश्म--क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो थी,
उनकी आँखों ने खुदा जाने किया क्या जादू
के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो थी,
अक्स--रुख--यार ने किस से है तुझे चमकाया
ताब तुझ में माह--कामिल कभी ऐसी तो थी,
क्या सबब तू जो बिगड़ता है ज़फर से हर बार
खू तेरी हूर--शमाइल कभी ऐसी तो थी.

No comments:

Post a Comment