ये मौजेज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे के संग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आये मुझे वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम दग़ा करे वो किसी से तो शर्म आये मुझे वोही तो सबसे ज़ियादा है नुक्ता-चीं मेरा जो मुस्कुरा के हमेशा गले लगाये मुझे वो मेहरबाँ है तो इक़रार क्यूँ नहीं करता वो बद-ग़ुमाँ है तो सौ बार आज़माये मुझे मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ 'क़तील' ग़म-ए-हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे
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