हम आपके दुःख में शरीक हैं। ये शब्द बहुत हद तक सही है , पर मौत में नहीं। कोई भी कितना ही सागा हो , पर कोई इंसान कभी किसी के अपने के गुजरने का गम नहीं समझ सकता। किसी अपने का खोना आपको अकेले ही सहना होता है।
जन्म , ख़ुशी , मौज मस्ती , ये सब आप बाँट सकते हैं और उसी अस्तर पर और लोग भी आपके ख़ुशी में शामिल हो जायेंगे।
मगर , किसी का खोना , हर पल एक उलझन और कश्मकश है जो आप आपने आप से लड़ते हैं। ऐसा नहीं की घर में और लोग ये नहीं समझते हैं , ये भी हो सकता है ही हर कोई यही उलझन में हो , पर फिर भी सब अकेले हैं।
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