2010 , papa decided to move with me ( Delhi ) .
Painful , blank , moved ...I was also ...as we were vacating
our house in Bokaro .
There was no way we could have brought everything to Delhi , so we offered them to
our close friends .
It was difficult to see papa's pain of letting things go ...but
it was . All items ....30 ...40 years old ...part of our daily life , attached .
and finally ...it was all over .
आशियाना
चमन
की बहारों में था आशियाना,
न जाने कहाँ खो गया वो ज़माना.
न जाने कहाँ खो गया वो ज़माना.
ये
किस ख़लिश ने फिर इस दिल में आशियाना किया,
फिर आज किस ने सुख़न हम से ग़ायेबाना किया.
फिर आज किस ने सुख़न हम से ग़ायेबाना किया.
इसी
चमन में ही हमारा भी इक ज़माना था,
यहीं कहीं कोई सादा सा आशियाना था.
यहीं कहीं कोई सादा सा आशियाना था.
नसीब
अब तो नहीं शाख़ भी नशेमन की,
लदा हुआ कभी फूलों से आशियाना था.
लदा हुआ कभी फूलों से आशियाना था.
ख़ुश्क
टहनी पर परिंदा है कि पत्ता है 'अदीम',
आशियाना भी नहीं जिस का कोई पर भी नहीं.
आशियाना भी नहीं जिस का कोई पर भी नहीं.
कभी
दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मदावा,
कभी बिजलियों की ख़्वाहिश कभी फिक्र-ए-आशियाना.
ख़ुद
अपने हाथ से "शहजाद"उस को काट दिया, कभी बिजलियों की ख़्वाहिश कभी फिक्र-ए-आशियाना.
के जिस दरख़्त के टहनी पे आशियाना था.
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