Friday, 30 August 2013

लगता नहीं है दिल मेरा,उजडे दयार में

Papa was singing this ghazal today morning . very emotional and I always feel he deeply misses Maa , but then few things are always within , and wrapped in heart . 

लगता नहीं है दिल मेरा,उजडे दयार में
किस की बनी है आलम-ए-नापायेदार में

कहे दो इन हसरतों से, कहीं और जा बसे
इतनी जगेह कहाँ है, दिल-ए-दाग़दार में
उमर-ए-दराज़ मांग के,लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये, दो इंतेज़ार में
इतना है बद-नसीब ज़फ़र,दफ़्न के लिये
दो गज़ ज़मीन भी न मिली,कोए यार में
लगता नहीं है दिल मेरा,उजडे दयार में

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